मेराथॉन का भारतियन क्यों?
क्या हमें मालूम है फिडपलीस नामक हृष्ट पुष्ट जवान व्यक्ति; जिसका रोज का काम ही, दौड़कर सूचनाएं पहुंचाने का था; मात्र 40 किलोमीटर की दौड़ पूरी कर के कुछ ही घंटों में मृत्यु को प्राप्त हो गया था?
क्या हमें यह भी मालूम है कि इस धावक द्वारा दौड़ी हुई दूरी; हमारी गुलामी के काल में बदल कर, ब्रिटिश महारानी के दरवाजे से शुरू होकर; तकरीबन इतनी बढ़ गई; जिसे हम आज “मैराथन” के नाम से जानते हैं?
जिस शब्द में मृत्यु और गुलामी अंतर्निहित हो; स्वतंत्रता के इतने वर्ष पश्चात भी उसी में उलझे रहना; क्या हमारे मानसिक दिवालियापन की; उद्घोषणा नहीं करता?
क्या हमें मेराथॉन का स्थानापन्न नहीं ढूंढना चाहिये? या कहें कि क्या हमें मेराथॉन का भारतियन; नहीं करना चाहिये?
अपने बेहतर स्वास्थ्य और राष्ट्र गौरव के उत्थान हेतु; क्या उसे साहस, सहनशक्ति, आत्मबल, आत्मविश्वास व सामर्थ्य के सतत उन्नयन का मार्ग: *आत्मौत्थान* से स्थानापन्न, नहीं कर देना चाहिये?
क्या इसके लिये क्या हम, चलने या दौड़ने का अभ्यास अपनी क्षमता अनुसार नहीं शुरू कर सकते?
क्या हम अपनी दैनिक दूरी को प्रतिदिन केवल एक या दो प्रतिशत से बढ़ाते हुये प्रगति नहीं कर सकते?
यदि 1 से प्रारंभ कर, हम कुछ भी ना करें; तो हजार दिनों के बाद भी परिणाम: (1.00)1000 = 1.00 बनाम
लैकिन यदि 1 से प्रारंभ कर, रोज पिछले दिन से सिर्फ 1% ज्यादा प्रयास करें; तो 500 दिनों के बाद परिणाम क्या (1.01) 500* = शुरूआत का 144.77 गुना नहीं हो जायेगा? *(केलकुलेटर देखें)
क्या इस तरह *आजादी के प्लेटिनम जुबली वर्ष* के अंत यानी *15 अगस्त 2023* को आप अपनी शुरुआती दूरी का बीसीयों गुना से अधिक तो नहीं *दौड़* जायेंगे?
कल्पना कीजिए कि "झुंड के झुंड", भारत भर में; 1 से 51 किलोमीटर की पैदल दूरी उस दिन एक साथ तय करते हैं; तो हमारे स्वास्थ्य, सहनशक्ति, आत्मविश्वास और *राष्ट्र की वैश्विक छवि* का स्तर कहां पहुंचेगा?
परिणाम स्वरूप; क्या अपना अतिरिक्त वजन सही नहीं होगा बोनस में?
अपने देश के सभी निर्यातों से अधिक अच्छी आय राष्ट्र को नहीं होगी?
विदेश गए हुए हमारे सगे-संबंधी और मित्रों की आमदनी नहीं बढ़ जाएगी? जिससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार निरंतर बढ़ता हुआ नहीं चला जाएगा?
दुनिया में ना तो कहीं ओर इतनी आबादी के साथ, हमारे जितना जनसंख्या घनत्व है; और ना भविष्य में होने की कोई संभावना है।
क्या हमारे द्वारा बनाया हुआ रिकॉर्ड; सदियों-सदियों तक कोई और तोड़ भी पाएगा?
तो क्या इसे हम अपने सभी समूहों में बांट कर; पूरे देश में नहीं फैला सकते?