आत्मौत्थान®; आपके साहस, सहनशक्ति, आत्मबल, आत्मविश्वास व सामर्थ्य के सतत उन्नयन का मार्ग।
आत्मोत्थान का मतलब:
तनावमुक्त हृदय गति को, न्यूनतम की ओर ले जाते हुए; हमें आवंटित धड़कनों को; शताधिक वर्ष मितव्ययिता पूर्वक उपयोग करते; परिवार, समाज, पर्यावरण व मानवता के हितार्थ; कर्मौन्मुख रहना।
सबसे अच्छा व्यायाम है चलना।
उन तर्कों से दूर चले जायें जो क्रोध की ओर ले जाते हैं।।
उन विचारों से दूर चले जायें जो आपकी खुशियाँ चुराते हैं।
उन लोगों से दूर चले जायें जिन्हें तुम पसंद नहीं करते।।
और चल पड़ें अपने व अपने राष्ट्र के उत्थान के लिये।
प्रायःअपने जीवन के तीसरे-चौथे दशक में पहुंचते-पहुंचते, हमारे बच्चे हमारी शारीरिक ऊंचाई के नज़दीक पहुंचना शुरू कर देते हैं; और हम, हमारी आत्ममुग्धता के चरण में, प्रवेश कर जाते हैं.
आत्ममुग्धता का दौर आरंभ होते ही; हमारे ऊपर आत्मश्लाघा का भूत, सवार होना शुरू कर देता है.
इस आत्ममुग्ध अवस्था के दलदल में फसना आरंभ होते ही, हमारे ऊपर कुछ अनअपेक्षित जिम्मेदारियों का बोझ; बढ़ना शुरू हो जाता है; जिसका हमारे अभी तक के जीवन में; ना तो अनुभव होता है और ना ही कल्पना ही होती है.
इसी आत्मश्लाघा के दौर में जीवन का; एक तिहायी हिस्सा पूरा करते-करते, जीवन के मध्यान्न की तरफ; बढ़ते हुए हम अहंकार; ईगो व "सहानुभूति की नदारदता" के दलदल; में धसना शुरू कर देते हैं.
फल स्वरूप थकावट, चिड़चिड़ाहट, ईर्ष्या, अधीरता, कमर दर्द, पीठ दर्द, डायबिटीज और ना जाने क्या-क्या शारीरिक, सामाजिक व मानसिक बीमारियां; हमारे ऊपर अपना अधिकार जताना शुरू कर देती हैं.
आध्यात्मिकता के अभियान में, इस परिस्थिति को आत्मा के ऊपर चढ़ने वाले चोले के रूप में; परिभाषित किया गया है.
प्रश्न उठता है कि, क्या यह सब अवश्यंभावी है?
क्या यह हर किसी के साथ होता है?
ठीक इसी जगह पर, मुझे एक मानसिक विसंगति; जिसे बहुसंख्य समाज, अपनाने को बाध्य है; आभासित होती है.
क्या हम अपने चार आश्रमों (धर्म, अर्थ, काम, मौक्ष) वाली, शतायु जीवन पद्धति से; पिछली छह सात पीढ़ियों में भटक कर; मैराथन संस्कृति के; भ्रम जाल में नहीं फंस चुके?
15 अगस्त 1947 को हमें अपने आक्रमणकारियों से आजादी मिली थी।
लेकिन क्या हमारे दिमाग में, आक्रमण का डर; अभी भी बैठा नहीं हुआ है?
एक डर (महामारी ओमिक्रॉन का) और हमारे शरीर में, कई सामाजिक व व्यावसाय जनित रोग; जैसे मायोपिया, पीठ दर्द, मधुमेह; आदि- इत्यादि?
क्या हमें आज इन सभी आक्रमणकारियों के साथ; "2-2 हाथ" करने की, आवश्यकता नहीं है?
क्या हम जानते हैं, कि जब हमने अपने करियर को एक गतिहीन जीवन (सीडेण्ट्री लाइफ) के लिए; चुना था तो हमने इसे वर्तमान परिणाम के, केंद्र के रूप में; आमंत्रित किया था?
अगर हमने देखा होता, कि जब पिछले साल प्रवासी मजदूरों की भीड़; अपने-अपने मूल स्थानों पर जा रही थी; फिर भी वह, हमारे देश की ग्रामीण गहराई में; महामारी फैलाने में सक्षम, नहीं हो पायी थी।
उस घटना से, क्या हम एक अंतर्दृष्टि नहीं ले सकते?
जो है चलने के एक मिशनरी उत्साह के साथ, हमारे कम ढके हुए शरीर (जैसे बरमूडा / टी-शर्ट या सिर्फ नौगजा साड़ी में) को; सूर्य के संपर्क में लाकर, शरीर में विटामिन डी का संश्लेषण बड़ाते हुये; प्रतिरोधकता व क्षमता का सतत उन्नयनन?
हमारी आजादी की प्लेटिनम जुबली में; 240 से अधिक दिन बचे हुये हैं।
क्या हमें मालूम है फिडपलीस नामक व्यक्ति मात्र 40 किलोमीटर की दौड़ पूरी होने के कुछ ही घंटों में अपनी भरी जवानी में मृत्युमुखी हो चुका था.
क्या हमें यह मालूम है कि इस धावक द्वारा दौड़ी हुई दूरी हमारी गुलामी के काल में बदल कर ब्रिटिश महारानी के दरवाजे से शुरू होकर तकरीबन इतनी बढ़ गई जिसे हम आज आधुनिक मैराथन के नाम से जानते हैं?
जिस शब्द में मृत्यु और गुलामी अंतर्निहित हो; स्वतंत्रता के इतने वर्ष पश्चात भी उसी में उलझे रहना क्या हमारे मानसिक दिवालियापन की उद्घोषणा नहीं करता? क्या हमें मेराथॉन का स्थानापन्न नहीं ढूंढना चाहिये? या कहें कि क्या हमें
मेराथॉन का भारतियन
नहीं करना चाहिये?
अनवरत ऊर्धौन्मुखी मनोभाव को जागृत कर; हमारे साहस, सहनशक्ति, आत्मबल, आत्मविश्वास व सामर्थ्य के; सतत उन्नयन हैतु, क्या हमें मेराथॉन को; आत्मौत्थान से स्थानापन्न, नहीं कर देना चाहिये?
मेराथॉन का भारतियन करने के लिये क्या हम पहले दिन सिर्फ 200 कदम चलने या धीमी गति से दौड़ने का अभ्यास करना शुरू कर प्रतिदिन अपनी दैनिक दूरी को केवल एक प्रतिशत से (यानि दूसरे दिन 202 कदम) बढ़ाते नहीं जा सकते?
क्या इस तरह सौवें दिन आरंभिक दूरी के लगभग 2.7 गुना और 240वें दिन आरंभिक दूरी के ग्यारह गुना से अधिक दूरी आसानी से पूरी नहीं कर लेंगे? इस प्रकार आजादी के प्लेटिनम जुबली वर्ष के अंत तक यानी 15 अगस्त 2023 को आप अपनी शुरुआती दूरी का 400 गुना से अधिक पूरा कर जायेंगे।
कल्पना कीजिए कि अगर हम भारतियों के "समूह के समूह", उस दिन देश भर में; 40 से 51 किलोमीटर की पैदल दूरी को एक साथ तय कर लेते हैं; तो हमारे स्वास्थ्य और सहनशक्ति के स्तर का क्या होगा?
और क्या होगी हमारे राष्ट्र की वैश्विक छवि?
15 अगस्त 2025 को, 1 00 000 कदम सबसे पहिले पूर्ण करने वाला भारतीय धावक; उस दिन 10 लाख अमरीकी डालर के बराबर का, पुरस्कार जीतेगा।