हम राष्ट्रीय शर्म को वैश्विक प्रभुत्व में कैसे बदल सकते हैं?

यह तस्वीर आपदा से शोषित हर भारतीय के अंदर छिपी ताकत को दर्शाती है। 

अधिकांश भारत की इस छिपी ताकत को हम अपने "वैश्विक प्रभुत्व" में बदलने के लिए भी तैनात कर सकते हैं। 


लेकिन यह कैसे संभव हो सकता है; वह भी मात्र आत्मविकास द्वारा?


बस सूर्य की किरणों द्वारा हमारी उघड़ी त्वचा पर मुक्त रूप से संश्लेषित विटामिन डी जमा करना शुरू करें।

 

पर ये कितना बेहूदा लगता है...!


ठीक है, बस अपनी बरमूडा और टी-शर्ट पहनें और रोज तेज चलना शुरू करें।


अपनी दैनिक दूरी को केवल एक प्रतिशत से प्रतिदिन बढ़ाते जाएँ।


और देखो, आप सौवें दिन लगभग 2.7 गुना और 240वें दिन आरंभिक दूरी के ग्यारह गुना से अधिक दूरी आसानी से पूरी कर लेंगे।


15 अगस्त 2025 को आप अपनी शुरुआती दूरी का 400 गुना से अधिक पूरा कर लेंगे।


मान लीजिए कि आप पहले दिन सिर्फ 200 कदम चलते हैं तो आप उस दिन 80000 से अधिक कदम (~ 51 किलोमीटर) से अधिक पूरा कर लेंगे।


ध्यान रहे कि पहला मैराथन दौड़ाक अपने साम्राज्य का नामित राज्य धावक था; उसका पेशा दैनिक आधार पर समाचार देना ही था। जो सिर्फ 40 किलोमीटर दूरी एक साथ चलने के तुरंत बाद मृत्यु को प्राप्त हो गया था। 


जबकि हमारे यहां उससे कईयों गुना दूरी अनवरत चलकर करोड़ों लोग अपने-अपने गांव-घर पहुंच गये थे। और आज भी स्वस्थ्य व सकुशल हैं। 

कल्पना कीजिए कि अगर हम भारतियों के "समूह के समूह", उस दिन देश भर में; 40 से 51 किलोमीटर की पैदल दूरी को एक साथ तय कर लेते हैं; तो हमारे स्वास्थ्य और सहनशक्ति के स्तर का क्या होगा?


और क्या होगी हमारे राष्ट्र की वैश्विक छवि?